कोरोना से बचाने वाला फेस मास्क क्यों बन गया है दिव्यांगों के लिए मुसीबत?
दोस्तों कोरोना के चलते मूक बधिरों के लिए ही मास्क पहनना बहुत ज्यादा परेशानी का सबब बनता जा रहा है क्योंकि मूक बधिर लोग लोगों के होंठों को पढ़कर और संकेतिक भाषाओं को समझ कर दूसरों से बात करते हैं लेकिन चेहरे पर मास्क होने पर वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
राष्ट्रीय बधिर संगठन के कार्यकारी निदेशक अनुज जैन के अनुसार सांकेतिक भाषा केवल हाथों की भाषा नहीं है यह तो हाथों की भाषा, चेहरे के हावभाव को समझना, तथा शरीर की भाषा का मेल होता है। चेहरे पर मास्क रहने की वजह से मूक बधिर लोग इन भाषाओं में बात नहीं कर पा रहे हैं। और उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ रही है।
आजकल लॉकडाउन के चलते घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है और जो लोग घर से बाहर निकल रहे हैं वह लोग अपने चेहरे पर मास्क लगाकर निकल रहे हैं और जब आपस में बात करनी होती है तो मास्क हटाना पड़ता है जिसकी वजह से कोरोना का सामना करना पड़ता है।
अब ऐसे हालात में मूक बधिर लोग करें तो क्या करें। मूक बधिर लोग इन्हीं सभी समस्याओं की वजह से जो जहां पर था वह वहीं पर रुका हुआ है। अपनी इन्हीं परेशानियों की वजह से मूक बधिर लोग बसों में बैठकर सफर नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी कई घटनाएं सामने आई है जहां पर मूक बधिर लोग संभाद न करने की वजह से पुलिस के पूछने पर भी वह जवाब नहीं दे पा रहे हैं। जिसकी वजह से पुलिस की मार का सामना करना पड़ रहा है।
इंदौर स्थित आनंद सेवा समिति के निर्देशक ज्ञानेंद्र पुरोहित ने बताया है कि जब इनको क्वारंटाइन केंद्रों पर भेजा जाता है तब वहां पर भी समझ में नहीं आता है कि इनके अंदर क्या बीमारी है क्योंकि इनका संवाद किसी को समझ में नहीं आ रहा है। क्या वे लोग भूखे प्यासे हैं या फिर भी लोग अस्वस्थ हैं इसके बारे में कोई कुछ समझ नहीं पा रहा है।